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सेब उत्पादन में इस साल काफी गिरावट की आशंका है

सेब उत्पादन में इस साल काफी गिरावट की आशंका है

देश में शीतलहर और बर्फवारी का कहर चल रहा है। परंतु, विगत वर्ष की तुलना में इस बार कम बारिश और बर्फबारी की वजह से देश में सेब उत्पादन काफी घट सकता है। मौसम विभाग के अनुसार, आगामी दिनों में बारिश-बर्फबारी होने की संभावना है। परंतु, ये सेब के चिलिंग पीरियड पूरे करने के लिए अनुकूल नहीं है। सेब की खेती करने वाले कृषकों के लिए एक काफी बुरी खबर है। भारत में इस साल औसत से कम बारिश एवं बर्फबारी की वजह से सेब की पैदावार में गिरावट आने की आशंका है। ये सेब बागवानों के लिए काफी बड़ी चुनौती खड़ी कर सकती है। दरअसल, उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर एवं हिमाचल प्रदेश जैसे सेब उत्पादक राज्यों में इस बार ना के समान बर्फबारी दर्ज हुई है। इसकी वजह से किसान बेहद चिंतित हैं। 

जनवरी के माह में एक सप्ताह से ज्यादा का वक्त बीत जाने के उपरांत भी इन राज्यों में वर्षा नहीं हुई है। बरसात ना होने के चलते बर्फबारी का भी कोई नामोनिशान नहीं है। इससे सेब की फसल को आवश्यकता के अनुसार, सर्दियों वाला मौसम नहीं मिल रहा है। इस परिस्थिति में विशेषज्ञों ने कहा है, कि कम बर्फबारी की वजह से सेब के आकार पर काफी प्रभाव पड़ेगा और उसकी मिठास भी घट जाऐगी।

सेब उत्पादन में भारी कमी की आशंका 

बागवानी विशेषज्ञों का कहना है, कि यदि कुछ दिनों में बारिश और बर्फबारी नहीं होती है, तोसेब की पैदावार में 20 से 25 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है। सेब पैदावार में गिरावट आने की वजह से सेब की कीमत भी काफी बढ़ सकती है। ऐसा कहा जा रहा है, कि बारिश न होने की वजह से भूमि से नमी गायब हो गई है। इसके परिणामस्वरूप सेब के पौधों को पर्याप्त नमी नहीं मिल पा रही है। विशेषज्ञों के मुताबिक, सेब के पौधों के विकास के लिए न्यूनतम 800 से 1000 घंटे के चिलिंग पीरियड की आवश्यकता होती है। परंतु, बारिश-बर्फबारी न होने के चलते चिलिंग पीरियड पूर्ण नहीं हो पाया है। ऐसी स्थिति में सेब की उपज काफी प्रभावित होने की संभावना हैं।

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किसान बारिश व बर्फबारी के लिए ईश्वर से भी प्रार्थना कर रहे हैं 

अगर हिमाचल प्रदेश पर एक नजर डालें, तो यहां के कृषक भी बारिश और बर्फबारी न होने से निराशा है। प्रदेश में बारिश और बर्फबारी की कमी के परिणामस्वरूप सेब के 5500 करोड़ रुपये के व्यवसाय पर काफी संकट के बादल छा रहे हैं। क्योंकि, बर्फबारी अब तक प्रारंभ नहीं हुई है, जिससे चिलिंग पीरियड की प्रक्रिया भी आरंभ नहीं हो सकी है। बतादें, कि इससे प्रदेश के हजारों बागबानों की चिंता काफी बढ़ गई है। ऐसे में बागवान बारिश एवं बर्फबारी के लिए देवी-देवताओं की प्रार्थना कर रहे हैं।

बरसात होने को लेकर IMD ने क्या संदेश दिया है ? 

सेब एक बेहद स्वादिष्ट फसल है। हिमाचल प्रदेश के अतिरिक्त उत्तराखंड में भी बड़े पैमाने पर सेब की खेती की जाती है। यहां लगभग 25 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में सेब के बागान लगे हुए हैं, जिससे प्रति वर्ष तकरीबन 67 हजार टन सेब की पैदावार होती है। उत्तरकाशी, नैनीताल, चंपावत, चमोली, देहरादून, बागेश्वर और अल्मोड़ा जैसे जनपदों में किसान सेब उगाते हैं। साथ ही, इन क्षेत्रों में किसानों द्वारा पुलम, नाशपाती और खुबानी की खेती भी की जाती है। यही कारण है, कि यहां के कृषक बारिश और बर्फबारी न होने की वजह से बेहद परेशान हैं। किसानों का कहना है, कि यदि बारिश और बर्फबारी नहीं हुई तो इससे उनकी फसल बर्बाद हो जाऐगी। साथ ही, मौसम विभाग के अनुसार, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में आगामी कुछ दिनों में बारिश-बर्फबारी होने की संभावना हैं। 

सेब की फसल इस कारण से हुई प्रभावित, राज्य के हजारों किसानों को नुकसान

सेब की फसल इस कारण से हुई प्रभावित, राज्य के हजारों किसानों को नुकसान

बारिश के साथ हुई ओलावृष्टि से किसानों को जमकर नुकसान पहुँचा रही है। हिमाचल प्रदेश में विगत 6-7 दिनोें से हो रही बारिश और ओलावृष्टि की वजह से सेब की फसलों को काफी ज्यादा हानि पहुंची है। खरीफ की भांति रबी का सीजन भी किसान भाइयों के लिए बेहतर नहीं रहा है। मार्च में हुई बारिश, ओलावृष्टि के चलते गेहूं और सरसों की फसल चौपट हो गई थी। इसके अतिरिक्त अन्य राज्यों में भी बारिश-ओलावृष्टि से फसलें क्षतिग्रस्त हुई हैं। वर्तमान में ऐसे ही खराब मौसम की वजह से सेब के बर्बाद होने की बात सामने आ रही हैं। सेब को महंगी एवं पहाड़ी राज्यों की विशेष फसल मानी जाती है। ऐसी स्थिति में इस फसल के क्षतिग्रस्त होने के चलते किसानों की चिंता बढ़ गई हैं। किसान भाई काफी परेशान हैं, कि उसके नुकसान की भरपाई किस प्रकार की जाए। यह भी पढ़ें : कृषि विज्ञान केंद्र पठानकोट द्वारा विकसित सेब की किस्म से पंजाब में होगी सेब की खेती

इस राज्य में ओलावृष्टि से हुआ नुकसान

मूसलाधार बारिश और ओलावृष्टि से किसानों को हानि हो रही है। कुल्लू की लग घाटी, खराहल घाटी और जनपद के ऊपरी क्षेत्रों में फसलों को बेहद हानि हुई है। बहुत से स्थानों पर काफी बड़ी संख्या में कच्चे सेब ही पेड़ से नीचे गिर चुके हैं। यहां तक कि उनकी टहनियां तक भी टूट गई हैं।

फसल में 80% प्रतिशत तक हानि की आशंका

लगातार बारिश, अंधड़ एवं ओलावृष्टि का प्रभाव सीधे सीधे फसलों व फलों पर देखने को मिल रहा है। जिला प्रशासन एवं कृषि विभाग के माध्यम से नुकसान हुई फसल का सर्वेक्षण करना चालू कर दिया गया है। इसी कड़ी में स्थानीय किसानों ने बताया है, कि बारिश 6 से 7 दिन से निरंतर हो रही है। ऐसी हालत में 50 से 80 प्रतिशत तक हानि होने की संभावना है।

राज्य में बढ़ती ठंड और बारिश से हजारों की संख्या में किसान बर्बाद

सेब की अब फ्लावरिंग हो रही है। इस घड़ी में हुई बारिश और बढ़ी ठंड की वजह से सेब के फूलों को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। फलदार पौधे, मटर,नाशपाती, प्लम सहित बाकी सब्जियों पर भी इसका प्रभाव देखने को मिल रहा है। खबरों के मुताबिक, घाटी में लगभग 30 हजार हेक्टेयर में बागवानी हो रही है। जिससे लगभग 75 हजार परिवार प्रत्यक्ष रूप से खेती से जुड़े हैं। अब ऐसी हालत में इन परिवारों को भारी नुकसान हुआ है।
इतने रूपये किलो से कम भाव वाले सेब के आयात पर लगा प्रतिबंध

इतने रूपये किलो से कम भाव वाले सेब के आयात पर लगा प्रतिबंध

भारत सरकार के द्वारा सेब कारोबारियों को काफी सहूलियत प्रदान की गई है। 50 रुपये से कम कीमत वाले सेब के आयात पर रोक लगा दी है। इससे भारत में सेब व्यापार से जुड़े कारोबारियों एवं कृषकों की आमदनी में काफी इजाफा किया जाएगा। विदेशों के सेबों की कीमत कम होने की वजह से भारत में उत्पादित किए जाने वाले सेब की स्थिति काफी खराब थी। सेब कारोबारियों द्वारा किया गया खर्चा तक नहीं निकल पा रहा था। बतादें, कि आमदनी का सौदा माने जानी वाली फसल से कृषक धीरे-धीरे दूर होने लगे थे। इसी कड़ी में केंद्र सरकार की तरफ से सेब उत्पादकों एवं कारोबारियों को एक बड़ी राहत दी है। इससे देश में सेब कारोबार से जुड़े सभी किसान एवं कारोबारियों की आमदनी में अच्छा खासा इजाफा होगा। जब किसी चीज का मूल्य कम या ज्यादा होता है, तो उसकी मांग सीधे तौर पर परिवर्तित होती है।

केंद्र सरकार द्वारा सेब से जुड़ी नई शर्त लागू की गई है

केंद्र सरकार द्वारा सेब आयात पर अब नई शर्त लागू हो चुकी है। इसके अंतर्गत 50 रुपये किलो से कम भाव के सेब का आयात नहीं किया जाएगा। विदेश व्यापार महानिदेशालय द्वारा इससे जुड़ी अधिसूचना जारी कर दी गई है। अधिसूचना के मुताबिक, अगर सीआईएफ (माल ढुलाई, लागत, बीमा) आयात कीमत 50 रुपये किलो से कम होती है, तब उस स्थिति में इस तरह के सेब का आयात प्रतिबंधित कर दिया जाएगा। ये भी पढ़े: बम्पर फसल के बावजूद कश्मीर का सेब उद्योग संकट में, लगातार गिर रहे हैं दाम

केवल इस देश पर प्रतिबंध नहीं लगाया जाएगा

न्यूनतम आयात मूल्य से जुड़ी शर्तें भूटान से आयात किए जाने वाले सेब पर लागू नहीं की जाऐंगी। शर्ताें के मुताबिक, सीआईएफ आयात मूल्य 50 रुपये प्रति किलोग्राम से कम आएगा। इससे आयात काफी प्रतिबंधित होगा। परंतु, न्यूनतम आयात मूल्य की शर्तें भूटान पर लागू नहीं की जाऐंगी।

कश्मीरी सेब उत्पादक और कारोबारी काफी चिंतित थे

भारत में ईरान से सेब का अत्यधिक मात्रा में आयात किया जाता है। ईरान से सेब की बहुत सारी बड़े स्तर पर सेब की खेप की जाती है। इसके चलते भारत में सेब काफी हद तक सस्ती कीमतों पर बिकता है। भारत में जम्मू कश्मीर एक बड़ा सेब उत्पादक राज्य है। परंतु, यहां का सेब विदेशों के सेब से कुछ ज्यादा महंगा होता है, इस वजह से लोग सस्ते के चक्कर में कश्मीरी सेब नहीं खरीदते हैं। आयात पर शर्ते लगाने अथवा प्रतिबंध लगाने की मांग सेब कारोबारी काफी वक्त से कर रहे थे। हालाँकि, वर्तमान में सेब पर प्रतिबंध लगने से सेब कारोबारी और किसान काफी ज्यादा प्रशन्न हैं। ये भी पढ़े: हाइवे में हजारों ट्रकों के फंसने से लाखों मीट्रिक टन सेब हुआ खराब

भारत इन देशों से सेब आयात करता है

भारत सेब आयात विभिन्न देशों से करता है। भारत को सेब भेजने वाले देशों के अंतर्गत अफगानिस्तान, फ्रांस, बेल्जियम, चिली, इटली, तुर्की, न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीका, पोलैंड, ईरान, ब्राजील, अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात सहित अन्य देश भी शम्मिलित हैं। अप्रैल-फरवरी 2023 में भारत द्वारा 260.37 मिलियन डॉलर सेब आयात किया गया था, जबकि 2021-22 में यह 385.1 मिलियन डॉलर तक रहा है।